, गाड़ी के लिए कर्ज
भोपाल / बढ़ते नॉन परफार्मिंग असेट (एनपीए) और नकदी के संकट के चलते अब बैंक नए कर्ज देने में कई सावधानियां बरत रहे हैं। इसके चलते प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोगों को नए लोन लेने में खासी दिक्कत हो रही है। अब घर, गाड़ी और कंज्यूमर लोन उनको नौकरी देने वाले नियोक्ता की सिफारिश पर ही मिल सकता है। इस सिफारिश में नियोक्ता को लिखकर देना होगा कि अगर लोन लेने वाला कर्मचारी नौकरी छोड़कर गया तो उसके फाइनल सेटलमेंट से पहले इसकी जानकारी बैंक को देनी होगी।
अगर लोन लेने वाले कर्मचारी को नई नौकरी मिल रही है, तो कहां मिल रही है, यह जानकारी भी बैंक रखेगा। अगर उसे लंबी अवधि तक किसी रोजगार की कोई संभावना न दिखे तो बैंक उसके लोन की रिकवरी के लिए उसकी दूसरी परिसंपत्तियों की जानकारी तक हासिल करेंगे। दरअसल, पिछले दिनों बैंकों के ऑडिट में बड़े पैमाने पर यह पाया गया था कि कारपोरेट लोन के साथ छोटे-छोटे रिटेल लोन देने में बैंकों ने तय प्रक्रिया का पालन तक नहीं किया। इसके लिए लोन एप्रूव करने वाले अधिकारियों को ही जिम्मेदार माना गया। कई अधिकारियों को तो दंड स्वरूप डिमोट तक कर दिया गया। इसके चलते अब बैंक नए कर्ज देने में काफी सतर्कता बरत रहे हैं। हालांकि जानकारों का कहना है कि इस सतर्कता से बाजार में नए कर्ज मिलने में परेशानी खड़ी होगी।
पहले
प्राइवेट नौकरी करने वालों की सैलरी स्लिप ही लोन लेते वक्त काफी मान ली जाती थी।
तीन साल का इनकम टैक्स रिटर्न का सीए का सर्टिफिकेट काफी था।
जहां नौकरी कर रहे हैं उस कंपनी की डिटेल काफी मानी जाती थी।
प्राइवेट नौकरी बदलने की जानकारी देना बिल्कुल जरूरी नहीं था।
थर्ड पार्टी गारंटी जरूरी नहीं थी।
अब
अब ऐसा नहीं होगा। सैलरी स्लिप को नियोक्ता से क्रॉस चैक कराई जा रही, ताकि सही इनकम पता लग सके।
आवेदक का बैंक स्टेटमेंट्स का क्रॉस वेरिफिकेशन होगा। देखेंगे कि वास्तव में कितनी आय अर्जित की
नियोक्ता का एक प्रमाणपत्र देना होगा कि आवेदक उसके यहां नौकरी करता है।
बैंक को यह जानकारी नियोक्ता को ही देनी होगी। साथ ही सेटलमेंट की राशि रोककर रखना होगी।
अब थर्ड पार्टी गारंटी जरूरी होगी।
उद्योग लगाने और व्यापार शुरू करने के लिए इस तरह सख्त हुईं शर्तें
व्यापारी व उद्यमी द्वारा दी जाने वाली बैलेंस शीट काफी मानी जाती थी।
उद्यमी के लिए मशीनरी का काेटेशन लगाना काफी माना जाता था।
फैक्ट्री लगाने के लिए जरूरी क्लीयरेंस का प्रमाण देना जरूरी नहीं था।
अब बैंक उस बैलेंस शीट को क्रॉस चेक करेंगे।
अब उस मशीन की बाजार में प्रचलित कीमत पता लगाएंगे बैंक।
सारे क्लीयरेंस दिखाना जरूरी। मशीन लगाने जरूरी अप्रूवल देना होगा।
समझना होगा कि सबके पास सरकारी नौकरी तो नहीं है
बाजार को सपोर्ट की जरूरत है। ऐसे में बैंकों को नए कर्ज मिलना और आसान बनाना चाहिए। सबके पास सरकारी नौकरी नहीं हो सकती। उन्हें नई ग्रोथ प्राइवेट सेक्टर से ही मिल सकती है। इस तरह की सख्ती से वे कर्ज की दर की बढ़ोतरी की संभावनाओं को खो देंगे। - डॉ. आरएस गोस्वामी, अध्यक्ष, एमपीसीसीआई